मकर संक्रांति (खिचड़ी) क्यों मनाई जाती है? और इसका महत्व क्या है? Makar Sankranti (khichadi)

मकर संक्रांति (खिचड़ी) क्यों मनाई जाती है? और इसका महत्व क्या है?

मकर संक्रांति पर खिचड़ी दान करते हुए एक भारतीय व्यक्ति, जो धार्मिक, सामाजिक और स्वास्थ्य से जुड़े पर्व की महत्ता को दर्शाता है।"

मकर संक्रांति: खिचड़ी का पर्व और इसकी महत्ता

भारत एक ऐसा देश है, जहां हर त्योहार अपने भीतर गहरी सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक महत्ता समेटे हुए होता है। इन्हीं त्योहारों में से एक है मकर संक्रांति, जिसे देश के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग नामों और परंपराओं के साथ मनाया जाता है। उत्तर भारत में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व के रूप में भी जाना जाता है। इस दिन खिचड़ी पकाने और इसे दान करने की परंपरा का विशेष महत्व है। इस लेख में हम जानेंगे कि मकर संक्रांति पर खिचड़ी क्यों बनाई और दान की जाती है और इसके पीछे के धार्मिक, सामाजिक और वैज्ञानिक कारण क्या हैं।


मकर संक्रांति का महत्व


मकर संक्रांति हिन्दू पंचांग के अनुसार पौष महीने में आती है। यह पर्व सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने का प्रतीक है। इसे सूर्य के उत्तरायण होने का दिन भी कहा जाता है, जब सूर्य दक्षिणी गोलार्द्ध से उत्तर की ओर बढ़ता है। इस खगोलीय घटना को हिन्दू धर्म में अत्यधिक शुभ माना गया है।

खिचड़ी खाता हुआ व्यक्ति

मकर संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा का विधान है, क्योंकि सूर्य को ऊर्जा, प्रकाश और जीवन का स्रोत माना गया है। इस दिन को फसल कटाई के उत्सव के रूप में भी मनाया जाता है। देश के विभिन्न हिस्सों में इसे पोंगल, लोहड़ी, उत्तरायण और भोगाली बिहू जैसे नामों से जाना जाता है।


खिचड़ी और मकर संक्रांति का संबंध


उत्तर भारत में मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व कहा जाता है। खिचड़ी बनाने और दान करने की परंपरा के पीछे कई कारण हैं:


1. धार्मिक महत्व


खिचड़ी से जुड़े धार्मिक पहलुओं की बात करें तो, यह पर्व मुख्य रूप से दान और धर्म का दिन माना गया है। पुराणों में वर्णित है कि मकर संक्रांति के दिन तिल, चावल, उड़द की दाल और अन्य अन्न का दान करना अत्यंत पुण्यकारी होता है।


भगवान सूर्य की पूजा: 

खिचड़ी में तिल, चावल और दाल का उपयोग होता है। तिल और चावल सूर्य देव को अर्पित किए जाने वाले प्रमुख पदार्थ हैं।

खिचड़ी (मकर संक्रांति) क्यों मनाई जाती है।

पितरों का तर्पण:

 इस दिन खिचड़ी और तिल का दान करना पितरों को संतुष्ट करने का साधन माना जाता है।


ध्यान और तपस्या: 

मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन से ऋषि-मुनियों का तप और ध्यान अधिक प्रभावी होता है। खिचड़ी के रूप में सादा भोजन ग्रहण कर धर्म-कर्म के कार्यों को प्राथमिकता दी जाती है।



2. सामाजिक महत्व


मकर संक्रांति का पर्व समाज में समानता और एकता का संदेश देता है। खिचड़ी एक ऐसा व्यंजन है, जो सादगी और समरसता का प्रतीक है। इसमें विभिन्न प्रकार के अनाज और दालें मिलाकर बनाई जाती हैं, जो यह दर्शाती हैं कि विविधता में एकता का महत्व कितना बड़ा है।


सामाजिक मेल-जोल: 

खिचड़ी बनाने और इसे साझा करने की परंपरा परिवार और समाज में आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देती है।

(खिचड़ी) मकर संक्रांति मनाने का महत्व

दान-पुण्य की भावना:

 गरीबों और जरूरतमंदों को खिचड़ी का दान करना उनके प्रति सहानुभूति और करुणा का प्रतीक है। यह समाज में समानता लाने का प्रयास भी है।



3. आयुर्वेद और स्वास्थ्य


मकर संक्रांति ठंड के मौसम में आती है, जब शरीर को ऊष्मा और ऊर्जा की अधिक आवश्यकता होती है। खिचड़ी एक ऐसा भोजन है, जो पाचन के लिए हल्का और पोषण से भरपूर होता है।


तिल और उड़द की दाल का महत्व: 

तिल शरीर को गर्मी प्रदान करता है और उड़द की दाल प्रोटीन का अच्छा स्रोत है।


पचने में आसान: 

ठंड के दिनों में भारी भोजन के बजाय खिचड़ी जैसे साधारण और पौष्टिक आहार का सेवन शरीर के लिए लाभकारी होता है।


प्रतिरोधक क्षमता:

 खिचड़ी में उपयोग किए जाने वाले मसाले, जैसे हल्दी और अदरक, प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने में मदद करते हैं।


4. खिचड़ी दान का महत्व


मकर संक्रांति के दिन तिल, चावल, गुड़ और खिचड़ी दान करना अत्यंत शुभ माना जाता है। स्कंद पुराण और गरुड़ पुराण में उल्लेख है कि इस दिन किए गए दान से अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है।

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गरीबों और साधुओं को भोजन: 

खिचड़ी एक सस्ता और भरपेट भोजन है, जिसे गरीबों और साधुओं को दान करना उनकी भूख मिटाने का सरल उपाय है।


पुण्य की प्राप्ति:

 मान्यता है कि मकर संक्रांति के दिन किए गए दान से पापों का नाश होता है और पुण्य की प्राप्ति होती है।


खिचड़ी से जुड़ी परंपराएं


मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने और दान करने की परंपरा हर क्षेत्र में भले ही थोड़ी अलग हो, लेकिन इसका उद्देश्य एक ही है – समाज में समरसता और धार्मिकता को बढ़ावा देना।


1. उत्तर प्रदेश और बिहार: 

यहां मकर संक्रांति को खिचड़ी पर्व के रूप में मनाया जाता है। लोग सुबह स्नान कर खिचड़ी बनाते हैं और इसे भगवान को अर्पित करने के बाद गरीबों में बांटते हैं।

2. पंजाब और हरियाणा: 

यहां मकर संक्रांति से एक दिन पहले लोहड़ी का त्योहार मनाया जाता है। खिचड़ी के साथ-साथ तिल और गुड़ का विशेष महत्व है।


3. उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश: 

यहां लोग खिचड़ी के साथ तिल के लड्डू बनाते हैं और इसे दान करते हैं।


4. पूर्वोत्तर भारत: 

मकर संक्रांति को भोगाली बिहू के नाम से जाना जाता है, जहां चावल और दाल से बने व्यंजन तैयार किए जाते हैं।


खिचड़ी: सादगी और समर्पण का प्रतीक


खिचड़ी का महत्व सिर्फ इसके स्वाद या पोषण तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति में सादगी और समर्पण का प्रतीक है।


सांस्कृतिक प्रतीक:

 खिचड़ी समाज की उस भावना को दर्शाती है, जहां हर व्यक्ति अपने हिस्से का योगदान देकर समरसता बनाए रखता है।


आध्यात्मिक महत्व: 

खिचड़ी का सेवन और दान यह सिखाता है कि सादगी में भी संतोष और तृप्ति पाई जा सकती है।


The end:

मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने और दान करने की परंपरा केवल एक धार्मिक कृत्य नहीं है, बल्कि यह सामाजिक समानता, स्वास्थ्य और प्रकृति के प्रति हमारी कृतज्ञता का भी प्रतीक है। यह पर्व हमें सिखाता है कि हम अपने जीवन में सादगी को अपनाएं, जरूरतमंदों की मदद करें और प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर चलें। खिचड़ी, जो विभिन्न अनाज और दालों का मिश्रण है, इस बात का प्रतीक है कि विविधता में ही एकता है। मकर संक्रांति का यह पर्व हमें न केवल धर्म और आस्था से जोड़ता है, बल्कि हमारे भीतर मानवीय मूल्यों को भी प्रबल करता है।


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